शौर्य की गाथा गाता है ये किला, विशालता ऐसी आक्रमणकारियों के हौसले हो जाते थे पस्त

Chittorgarh Fort

Chittorgarh Fort: भारत का एक ऐसा राज्य जहां के शौर्य और वीरता की गाथा पूरी दुनिया में विख्यात है। अपनी रंग रंगीली संस्कृति और कलाकृति के लिए भारत ही नहीं, विदेशों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ने वाला राजस्थान कुछ ऐसा ही है। इन सबके अलावा यहां के प्राचीन किले और दुर्ग आज भी वैसे ही अड़िग होकर खड़े दिखाई देते हैं जैसे वर्षों पहले। वीरता के परिचायक ये दुर्ग और किले अपने में कई रहस्य भी छिपाए हुए हैं।

राजस्थान का एक ऐसा ही दुर्ग हैं चित्तौड़गढ़ जिले में। भारत के सबसे ऐतिहासिक किलों में से एक चित्तौड़गढ़़ दुर्ग का इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है। यह दुर्ग भारत के सबसे बड़े दुर्गों में गिना जाता है। इस किले को जीतने के लिए कई आक्रांताओं ने इस पर आक्रमण किए, लेकिन इसकी बनावटी संरचना के कारण इसे जीतने में उन्हें भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस किले की संरचना ही ऐसे की गई है कि शत्रुओं को भी पसीने आ जाते थे।

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रानी पद्मावती के जौहर के लिए है विश्वविख्यात
राजस्थान की खूबसूरत रानियों में शुमार वीरांगना पद्मावती के जौहर के लिए भी यह किला विश्वविख्यात है। आज भी इस किले में जाते ही उस समय की बताई जाने वाली यादें ताजा होने लगती है। रानी पद्मावती के जौहर स्थल को देखने के लिए यहां विदेशों तक से सैलानी आते हैं। कहा जाता है कि, आक्रमणकारियों से खुद को बचाने के लिए रानी और उनके साथ कई महिलाओं ने खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था।

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दुर्ग में प्रवेश के सात द्वार
यह दुर्ग धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ की शिखा पर सीना तान कर खड़ा है। इसका निर्माण सातवीं सदी में करवाया गया था। चित्तौड़गढ़़ के किले में प्रवेश के सात द्वार है। इन द्वारों को पार करने में अच्छे-अच्छे महारथियों पसीने छूट जाते है। हालांकि, अब तो वाहनों से किले तक पहुंचा जा सकता है। रियासतकाल में रात्रि को यह दरवाजे निर्धारित समय पर बंद होते थे और खोले जाते थे। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद मौर्या ने करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा।

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हर दरवाजे का है अलग नाम
शौर्य की गाथा गाते चित्तौड़ दुर्ग में स्थित इन दरवाजों अलग-अलग नाम रखे गये है। जो रियासतकालिन है। इन दरवाजों में प्रथम द्वार पाडनपोल, द्वितीय भैरो पोल, तृतीय हनुमान पोल, चतुर्थ गणेश पोल, पंचम जोरला पोल, षष्ठ लक्ष्मण पोल और सांतवा दरवाजा राम पोल हैं। ये दरवाजे आज भी दुर्ग को मजबूती प्रदान किए हुए हैं। रियासत काल में इन सभी दरवाजों पर हर समय पहरेदार तैनात रहते थे। रात के समय दरवाजों के ऊपर तेल के बड़े दीप जलाकर रोशनी की जाती थी। दरवाजों को खोलने और बंद करने के लिए नंगाड़े और बड़े घंटे बजाकर संकेत दिए जाते थे।

Chittorgarh Fort: चित्तौड़गढ़ को राजपूताना की बहादुरी, पराक्रम के लिए जाना जाता है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग 700 एकड़ में फैला हुआ है और इस दुर्ग में कई महल, स्तंभ और मंदिर आदि हैं, जिसमें पद्मिनी महल, विजय स्तंभ, कीर्ति स्तंभ आदि यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आकृर्षण का केन्द्र हैं। अगर आपको भी राजस्थान आने का मौका मिले तो इस ऐतिहासिक किले को देखने का मौका कभी मत गंवाना।

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