मैथ्स से दूर भागते हैं बच्चे, तो समझ जाएं इस बीमारी से हैं ग्रसित! ऐसे करें इलाज

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Maths Dyslexia: अक्सर बच्चों को पढ़ाई से दूर भागते हुए देखा जाता है। स्कूल नहीं जाने के बहाने तो बच्चों से आसानी से सीखे जा सकते हैं। जब भी पढ़ने के लिए कहा जाता है तो उन्हें नींद आने लगती है। जी हां, ऐसा अधिकतर बच्चों और उनके पेरेंट्स के साथ होता है। कुछ बच्चे तो पढ़ाई में इतने होशियार होते हैं कि उन्हें एक या दो बार बताया जाता है तो फिर उसे वे भूलते नहीं है, लेकिन कुछ बच्चे इतने कमजोर भी होते हैं जो बार-बार रटाने के बाद भी ठीक से नहीं याद रख पाते है। अक्सर बच्चे गणित यानि मैथ्स से ज्यादा घबराते हैं। अगर बच्चों की मैथ्स शुरू में ही कमजोर रह जाती है तो हमेशा गणित के सवालों में उलझे रह जाते हैं। ऐसे में हम आपको बच्चों में पलने वाली एक ऐसी बिमारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से बच्चे पढ़ाई में बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं खासतौर पर मैथ्स में। बच्चों में होने वाली इस बीमारी को मैथ्स डिस्लेक्सिया (maths dyslexia) कहा जाता है।

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क्या है इस बीमारी की मुख्य वजह?
Maths Dyslexia:  दरअसल, पढ़ाई से जी चुराने वाले बच्चों में ये बीमारी जल्द घर करती है। बच्चे जब मैथ्स को कठिन विषय मान लेते हैं और उसे पढ़ने से बचने की कोशिश करते हैं तो ये उनके दिमाग में डर बनकर बैठ जाती है। जिसके चलते वो मैथ्स के सवालों से दूरी बना लेते हैं। जिसके चलते बच्चों को मैथ्स समझने में मुश्किल होती है। बच्चों में पाई जाने वाली इस बीमारी पर हुई एक रिसर्च से ये भी सामने आया है कि ये बीमारी जेनेटिक भी हो सकती है।

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तो ये हैं इसके लक्षण
– मैथ्स डिस्लेक्सिया के शिकार होने वाले बच्चे गणित के छोट-छोटे सवालों जैसे मल्टीप्लिकेशन, फ्रेक्शन और डिवीजन को भी हल नहीं कर पाते हैं।

– अगर कोई बच्चा इस बीमारी से ग्रसित है तो वह गिनती में भी उलझ जाता है और सीधी या उल्टी गिनती में कंफ्यूज हो जाता हैं।
– इस बीमारी के कारण कई बच्चों को नंबर पहचानने में भी दिक्कत होती है।

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ऐसे बचा जा सकता है इस बीमारी से
– मैथ्स डिस्लेक्सिया के लिए कोई अभी तक कोई प्रोपर इलाज सामने नहीं आया है, लेकिन एक्सपर्ट के अनुसार, बच्चे मैथ्स की रेगुलर प्रैक्टिस करें तो वे इस बीमारी पर जीत पा सकते हैं।
– इसी के साथ बच्चे अगर इस विषय को मन लगाकर ध्यान से पढ़ते रहे तो फिर मैथ्स उन पर कभी हावी नहीं हो सकती।
– इसके अलावा बच्चों को चाहिए कि वे पढ़ाई में कभी भी कैलकुलेटर का स्तेमाल नहीं करें और सवालों को दिमाग से ही हल करें।

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