बेंगलुरु | Husband Wife Fight Court : देश में पिछले कुछ समय से पति-पत्नी के झगड़ों को लेकर कोर्ट के फैसले काफी चर्चा में रहे हैं. ऐसे में एख बार फिर से कर्नाटक उच्च न्यायालय से एक मामला सामने आया है जिसकी जोर-शोर से चर्चा हो रही है. कोर्ट ने एक दंपती को तब तलाक की अनुमति इसलिए दे दी क्यों कि पति अपनी पत्नी को मात्र आमदनी का एक जरिया मानता था. इस संबंध में न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे. एम. काजी और न्यायमूर्ति जे. एम. काजी की खंडपीठ ने कहा है कि पति द्वारा पत्नी को मात्र आय का जरिया मानना एख तरह की क्रूरता है. जानकारी के अनुसार पीड़िता महिला ने अपने बैंक खातों के विवरण और अन्य दस्तावेज सौंपे थे जिसके अनुसार उसने अपने पति को बीते कुछ सालों में 60 लाख रुपये हस्तांतरित किये थे.
Husband Wife Fight Court : महिला का कहना था कि उसका पति सिर्फ पैसों के कारण उसे तलाक नहीं देना चाहता. महिला ने अपनी बातों को साबित करने के लिए जो साक्ष्य दिखाए थे वो भी इसी ओर इशारा कर रहे थे. बैंक के खातों से ये स्पष्ट था कि पति ने महज एक साल में पत्नी के खाते से 60 लाख रूपए के करीब लिए थे. इसे देखते हुए पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी (पति) ने याचिकाकर्ता को मात्र आमदनी का एक साधन (कैश काऊ) माना और उसका उसके प्रति कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं था. प्रतिवादी का रवैया अपने आप में ऐसा था, जिससे याचिकाकर्ता को मानसिक परेशानी और भावनात्मक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इससे मानसिक क्रूरता का आधार बनता है.
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Husband Wife Fight Court : बता दें कि महिला द्वारा दी गई तलाक की अर्जी को एक पारिवारिक अदालत ने 2020 में खारिज कर दिया था. इसके बाद उसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था. उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को यह कहकर खारिज कर दिया कि पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता (पत्नी) की दलील न सुनकर बड़ी गलती की है. महिला ने कहा कि उसने संयुक्त अरब अमीरात में नौकरी की और परिवार का कर्ज चुकाया. उसने अपने पति के नाम पर कृषि भूमि भी खरीदी, लेकिन व्यक्ति वित्तीय रूप से स्वावलंबी होने की बजाय पत्नी की आय पर भी निर्भर रहने लगा. इसके बाद महिला ने याचिका में कहा कि उसने अपने पति के लिए UAE में 2012 में एक सैलून भी खुलवाया, लेकिन वह 2013 में भारत लौट आया. निचली अदालत में तलाक की याचिका में पति पेश नहीं हुआ और मामले पर एकपक्षीय निर्णय सुनाया गया. निचली अदालत ने कहा था कि क्रूरता का आधार सिद्ध नहीं होता. जबकि हाईकोर्ट ने इसे क्रूर मानते हुए तलाक माना है.
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