अखबार बिकने से पहले ‘बिक’ रहे हैं, पंडित बोल्यो- राजा जी थे तो …

Press Freedom Day

Nishant Bhuwanika 

Press Freedom Day : जब मालूम हुआ कि आज “वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे ” है. तो मन मचल कर गया. सबसे पहले तो दो मिनट तक दिल जोर से हंसने का हुआ और फिर एक कहानी याद आ गई. पत्रकारों और सोशल मीडिया के यूजर्स , अब आप लोग सिर्फ भजन कीर्तन में लग जाइये या फिर टीवी पर कहानियां देखिए जिनके सूत्रधार हम मीडिया वाले हैं. आपको शायद ये बात अजीब लगेगी लेकिन ये सच है और आज के समय में जो पत्रकारिता का स्तर है वो इसी ओर इशारा करता है. इससे संबंधित एक कहानी आप भी सुनें और फिर खुलकर प्रेस की स्वतंतता दिवस मनाएं.

Press Freedom Day : एक महाराजा के दरबारी , सहायक पुरोहित और बराहिल सबकुछ थे. उस समय एक सिद्ध पंडित और ज्योतिष खासे चर्चा में थे. उनका नाम काफी दूर तक फैला था. लोग अपनी जिज्ञासा से उनके पास पहुंच ही जाया करते थे. सिद्धि पंडित सचमुच सिद्ध दरबारीलाल ही थे . महाराजा ने एक दिन अपने सभी विद्वानों , ज्योतिषियों और राजपुरोहित को बुलाकर पूछा कि मेरी आयु कितनी है ? मैं कितने दिन जीवित रहूंगा ? इसके पहले कि विद्वान ज्योतिषी कुछ गणित बिठाते सिद्ध पंडित बोल गए — हुजूर 123 साल सात महीने तेरह दिन और 5 घंटे …

Press Freedom Day :
Image Source : Astrologer Jaipur

Press Freedom Day : बाकी विद्वान और ज्योतिषी हिम्मत नही कर पाए कि इस गणित का जवाब दें. महाराजा बहुत खुश हुए और सिद्धि पाठक की प्रोन्नति की तत्काल घोषणा हो गयी. दरबार खत्म होने के बाद हमारे बड़े किसी ने सिद्ध पंडित जी से पूछा कि अतो सोरों झूठ किंया बोल्या जी , कोई मिनख अतरी साल किंया जी सके ? … सिद्धि पाठक बोले — पंडित जी चुप रहो थे , महाराजा मरया पाछै म्हार सू थोडी पूछेला की अतरो झूठ काइ वास्ते बोल्या.

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Press Freedom Day :
Image Source : Social Media

Press Freedom Day : कुछ यही हाल आज के पत्रकारों का भी है लोगों को आज महाराजा की तरह ही बेवकूफ बनाने का काम किया जा रहा है. अब तो दिक्कत यह है कि सरकार के खिलाफ कुछ भी बोले तो जेल. पत्रकारिता के इतने खराब दिन कभी नही आये थे. मीडिया मालिक तौले जा रहे हैं. सबसे ब़ड़ी बात है कि अखबार बिकने से पहले ” बिक ” जा रहे हैं. पत्रकार या तो लाचार हैं या मजबूर. ईमानदार बनकर सोशल मीडिया का सहारा लेना तक भी महंगा पड़ा रहा है अब तो. राज्य सरकारें हों या केंद्र विज्ञापन बंद करवाने के नाप पर जो छपास का खेल चला रहे हैंं उससे कोई भी मीडियाकर्मी अछूता नहीं है. समाज मे र विष , ख़ाकदीप , अमिश , अन जाना और चाचा चौधरी ने पत्रकारिता को दो खेमो में बांट दिया है. कोई गोदी मीडिया कहकर गाली देता है कोई दल्ला मीडिया कहकर चिढ़ाता है. अंत में बस यहीं कहना चाहुंगा कि अगर लोगों को भलाई चाहिए तो उन्हें मीडिया को सशक्त बनाना होगा कि क्यों कि पत्रकार हमेशा सरकार का विरोध करता हुआ ही शोभा देता है.

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