जब फाइलों से भरे कमरे देखकर मुख्यमंत्री का माथा चकरा गया

Ashok Gehlot

राजस्थान (Rajasthan) के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) दिल्ली में डेरा डाले हुए है और लगातार सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के सम्पर्क में है. अचानक दिल्ली में पायलट (Sachin Pilot) की बढ़ी हलचलों से राजस्थान (Rajasthan) की राजनीति में नए नए कयास लागये जा रहे है. भीतरखाने में चर्चा चल रही है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एक बार के लिए पायलट को राजस्थान की कमान दी जा सकती है.अगर ऐसा हो पाता है तो अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) भी राजस्थान के उन कांग्रेसी मुख्यमंत्रीयो की लिस्ट में शामिल हो जाएंगे जिन्हें समय से पहले बदला गया है.

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Source : OpIndia

राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान द्वारा मुख्यमंत्रीयो को बदलने का पुराना इतिहास रहा है. अगर अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को छोड़ दिया जाए तो सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रीयो को समय से पहले बदला गया है.राष्ट्रपति शासन के बाद हुए 1980 के चुनावों में राजस्थान में कांग्रेस Congress) को पूर्ण बहुमत मिला और संजय गांधी ने दिल्ली से मुख्यमंत्री बनाकर जगन्नाथ पहाड़िया को जयपुर भेज दिया. पहाड़िया की मुख्यमंत्री बनने की पहली योग्यता उनका अनुसूचित जाति से होना था और दूसरी योग्यता थी गांधी परिवार के प्रति वफादारी. इससे पहले पहाड़िया राजस्थान की राजनीति में ना तो कभी सक्रिय रहे और ना कभी उन्होंने रुचि दिखाई.

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Source : OneIndia Hindi

जब प्रदेश अध्यक्ष को नही पता कि मंत्री कौन है

मुख्यमंत्री पड़ की शपथ लेने के बाद जगन्नाथ पहाड़िया ने मंत्री मंडल के विस्तार में बहुत देरी कर दी. लेकिन 12 दिन बाद जब उन्होंने अपना मंत्रिमंडल बनाया तो मंत्री बनने वाले लोगो के नाम तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामकिशोर व्यास तक को नही बताये. तब रामकिशोर व्यास ने अपने भाषण में कहा कि “मैं मेरे उन अज्ञात मित्रों को बधाई देना चाहता हूँ जो थोड़ी देर बाद राजभवन में मंत्री पद की शपथ लेने वाले है जिनका नाम मुझे अभी नही पता है.

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Source : Dainik Bhaskar

पहाड़िया ने तोड़ी कांग्रेस की एक परंपरा

कांग्रेस में अक्सर एक परम्परा हुआ करती थी कि मंत्री पद की शपथ लेने से पहले मंत्री बनने वाले विधायको को पहले कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय ले जाया जाता था जहां उनका माला पहनाकर और मुंह मीठा करवाकर स्वागत किया जाता था लेकिन पहाड़िया ने अपने मंत्रिमंडल के नामो को इनता गुप्त रखा की कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तक को नही पता था कि कौन-कौन मंत्रिमंडल की शपथ लेने वाले है.

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बस नाम का मंत्रिमंडल

जब पहाड़िया के मंत्रिमंडल ने शपथ ली तो सबको हैरानी हुई क्योकि पहाड़िया ने किसी भी वरिष्ठ नेता और अनुभवी विधायक को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नही किया.शपथ लेने वाले तीन मंत्री और पांच उप मंत्रियों में सभी के सभी या तो संजय गांधी के वफादार थे या फिर पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया के विरोधी. जब मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हुआ तो 21 विभाग पहाड़िया ने अकेले अपने पास रखे और इस तरह पहाड़िया खुद सरकार के आधे से अधिक विभागों का कामकाज देखते थे.

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जब माथुर का माथा चकरा गया

जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी की मृत्यु के बाद ज्यादा दिन तक अपनी सरकार नही खींच पाए और तेरह महीने बाद ही उन्हें बदलकर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बना दिया गया. मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवचरण माथुर ने कामकाज संभाला तो मुख्यमंत्री के ऑफिस में फ़ाइलो से भरे कमरे देखकर उनका माथा चकरा गया क्योकि उनसे पहले मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया के पास 21 विभाग थे और इन विभागों के काम की फ़ाइल का बोझ इतना होता था कि पहाड़िया इन्हें समय रहते पूरा नही कर पाए. बाद में इन फ़ाइलो को निपटाने में शिवचरण माथुर को काफी समय लगा.

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