Hanuman Chalisa History : इन दिनों पूरे देश में हनुमान चालीसा महासंग्राम छिड़ा हुआ है और जमकर राजनीति भी हो रही है. इस मुद्दे पर राजनीति अलग जगह है लेकिन अगर आस्था की बात की जाए तो यह गाथा दुनिया भर में प्रतिदिन सबसे ज्यादा बार पढ़ी जाने वाली पुस्तिका है. हनुमान चालीसा के बारे में कई कहानियां प्रसिद्ध हैं. यहां बता दें चालीसा का मतलब 40 चौपाइयों से है. अवधी भाषा में लिखी गई है और इसका अब तक कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. देश ने विदेश में भी लोग हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत करना चाहते हैं. उनकी इस बात पर आस्था है कि ऐसा करने से उनके बिगड़े हुए काम भी बन जाएंगे और कोई विघ्न नहीं आएगा.
Hanuman Chalisa History : भगवान हनुमान को शिव जी का ही रूप माना गया है. हनुमान चालीसा में उनकी क्षमता भगवान राम के प्रति उनके भक्ति भाव और उनकी महानता और कामों का बख्यांन किया गया है. महर्षि तुलसीदास ने काफी विवेक और अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए इस महा ग्रंथ की रचना की है. हालांकि इसकी रचना के संबंध में लोगों के अलग-अलग विचार सामने आते हैं. कई लोगों का मानना है कि हनुमान चालीसा की रचना रामचरितमानस लिखने वाले तुलसीदास नहीं बल्कि किसी और दूसरे तुलसीदास ने ही की थी. हालांकि लोगों में सबसे ज्यादा प्रचलित जो है उसके अनुसार यह दो नहीं बल्कि एक ही थे.
Hanuman Chalisa History : बनारस में कई लोगों के मुंह से जो सुनने मिलता है उसके अनुसार अकबर ने एक बार तुलसीदास जी को उनके संबंध में ग्रंथ लिखने के लिए बुलवाया था. तुलसीदास के मना करने पर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया. यहां तुलसीदास की मुलाकात अकबर के खजांची टोडरमल से हुई और दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई. कहा जाता है कि अपने जेल प्रवास के दौरान ही तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना की थी जिसके बाद भगवान बहुत प्रसन्न हो गए थे. इस कहानी के पीछे लोगों का तर्क यही है की रामायण और हनुमान चालीसा दोनों ही अवधी भाषा में लिखी गई है. दोनों के भाव काफी मिलते-जुलते हैं ऐसे में किसी दूसरे तुलसीदास द्वारा इसे लिखे जाने का सवाल ही नहीं उठता.
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Hanuman Chalisa History : अकबर द्वारा जेल में बंद किए जाने के बाद महर्षि तुलसीदास का बाहर आना भी एक रोमांच की गाथा है. कहा जाता है कि जब तुलसीदास ने जेल में बंद होकर हनुमान चालीसा पूरी की तब वहां एक साथ कई बंदर आ गए. बंदरों ने बादशाह अकबर के महल में उत्पात मचा दिया . इन सब से परेशान होने के बाद अकबर ने तुलसीदास को विदा करने का फैसला किया. महर्षि तुलसीदास को रिहा करने के फैसले के बाद बंदरों का उत्पात भी खत्म हो गया. इसे एक बार काफी खुश हुए और तुलसीदास को प्रदेश में कहीं भी घूमने फिरने और बैठकर लिखने की स्वतंत्रता दे दी.
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