Thackeray family Maharashtra : एक समय में महाराष्ट्र की राजनीति के सूत्रधार माने जाने वाले बाला साहब ठाकरे का परिवार आज यहां राज कर रहा है. यह और बात है कि जो रुतबा और ठाठ बाला साहब के समय हुआ करता था वह आज उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी नहीं है. इसके पीछे के कई कारण हो सकते हैं लेकिन हम आज उन कारणों पर बात करने नहीं जा रहे हैं. हम आपको बताने वाले हैं कि एक समय में राज ठाकरे को बाला साहब का उत्तराधिकारी माना जाता था, तो ऐसा क्या हुआ जो उन्हें क्यों शिवसेना छोड़नी पड़ी. बालासाहेब ठाकरे का महाराष्ट्र में ही नहीं देश भर में क्या प्रभाव था ये किसी से भी छिपा हुआ नहीं है. उनके ऊपर फिल्म भी बन चुकी है और अक्सर सोशल मीडिया में बाला साहब के भाषणों के वीडियो वायरल होते रहते हैं. ऐसे में आइए समझते हैं कि ठाकरे परिवार दो भागों में कैसे बट गया.
Thackeray family Maharashtra : महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे आज राजनीति में अपनी एक अलग साख रखते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने अपनी पहली पार्टी यानी कि शिवसेना के लिए बहुत काम किया है. कहा जाता है कि जब समय आया तो राज ठाकरे को जो सम्मान दिया जाना चाहिए था वह पार्टी से नहीं मिला. राज ठाकरे के चाचा बालासाहेब ठाकरे और उनके बीच बाप बेटे जैसा ही रिश्ता था. बाला साहब ने उन्हें राजनीति के दांव पेच पीछे खाए थे और खूब पसंद किया करते थे. जनता भी राज ठाकरे को बाला साहब का उत्तराधिकारी मान चुकी थी. रंग, रूप, कद, काठी ही नहीं राज ठाकरे बालासाहेब की तरह एक बेहतरीन कार्टूनिस्ट भी हैं. शिवसेना में रहते हुए राज ठाकरे भारतीय विद्यार्थी सेना के अध्यक्ष भी थे. लेकिन शिवसेना में उचित सम्मान ना पाकर उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी.
Thackeray family Maharashtra : राज ठाकरे का शिवसेना छोड़ना और उद्धव ठाकरे का सक्रिय होना कहीं ना कहीं पुत्र मोह और महाभारत की कहानी को एक बार फिर से जिंदा करती है. वह कहां जाता है ना कि भतीजा कितना भी प्यारा हो बेटा नहीं बन सकता कुछ ऐसा ही राज ठाकरे के साथ हुआ. बालासाहेब ठाकरे की पत्नी मीना ठाकरे चाहती थी कि उनके परिवार में से कोई ना कोई राजनीति में रहे. लेकिन बड़े बेटे बिंदु माधव ठाकरे की सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी थी जबकि दूसरा बेटा जयदेव की पिता के साथ बनती नहीं थी. वह पहले ही अपने पिता के साथ विद्रोह कर परिवार से नाता तोड़ चुका था. ऐसे में पूरे परिवार को उद्धव ठाकरे से ही उम्मीद थी. उद्धव कभी खुद राजनीति में नहीं आना चाहते थे लेकिन संकोची और शर्मीले होने के बाद भी वे मां की बात टाल नहीं सके.
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Thackeray family Maharashtra : यह बात साल 1997 की है जब बीएमसी चुनाव के दौरान राज ठाकरे के सक्रिय होने के बाद भी टिकट बंटवारा उद्धव के इशारों पर हुआ. इस बात से राज ठाकरे काफी आहत हुए क्योंकि उन्होंने पार्टी के लिए काफी मेहनत की थी. कहा जाता है इसी के बाद से ठाकरे परिवार के अंदर दो भाग होना शुरू हुआ था. सुनने को यह भी मिलता है कि खुद बाला साहब ठाकरे नहीं चाहते थे कि उद्धव ठाकरे राजनीति में आएं. वह भी यही चाहते थे कि राज ठाकरे ही उनकी सत्ता आगे बढ़ाएं लेकिन पुत्र मोह और पत्नी की जिद के आगे बाला साहब ठाकरे कुछ नहीं कर सके. ठाकरे परिवार दो भागों में बांट चुका है शायद यही कारण है कि आज वह रुतबा और बाप महाराष्ट्र में शिवसेना का नहीं देखने को मिलता जो बाला साहब के समय था.
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