धरोहरों का अजायबघर राजस्थान

Heritage Day

जयपुर। अपने किले महल इमारतों के साथ ही लोक संस्कृति के अनूठे संगम वाला राजस्थान पूरे विश्वभर में एक अलग पहचान रखता है. किले और कला यहां के लोकजीवन का हिस्सा है. यहां के शासकों ने शुरू से ही कला और संस्कृति को प्रोत्साहन दिया और लोगो ने उस संस्कृति को अनवरत रखा. आज विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day) के अवसर पर आये जानते है राजस्थान की उन विशेष धरोहरों (Haritage) के बारे में जो देश और दुनिया में राजस्थान को विशेष पहचान दिलाती है.

हवा महल जयपुर

World Heritage Day: राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित हवामहल के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा. लाखो लोग हर साल देश दुनिया से इस पांच मंजिला इमारत को देखने जयपुर आते है. वास्तुकला का अद्भुत नमूने इस महल का निर्माण जयपुर के शासक सवाई प्रताप सिंह ने सन 1799 में करवाया है. सवाई प्रताप सिंह भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे इसलिए उन्होंने इस महल का आकार भगवान कृष्ण के मुकुट के समान रखवाया. लालचंद उस्ता द्वारा डिजायन किये गए इस महल में कुल 953 खिड़कियां है जिसके कारण गर्मियों में भी यह महल ठंडी हवा आने के कारण ठंडा रहता है. मुगल राजपूत शैली में बनाये गए इस महल को बनवाने का उद्देश्य जयपुर राज परिवार की राजपूत महिलाओं को बाजार और बाहर के उत्सवों को दिखाना था.

आमेर महल

World Heritage Day : विश्वभर में प्रसिद्द यह दुर्ग जयपुर शहर से लगभग ग्यारह किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ी पर स्थित शान से खड़ा राजस्थान की सुंदरता में चार चांद लगाता है. इस दुर्ग का निर्माण आमेर के राजा मैं सिंह के समय शुरू हुआ और बाद में मिर्जा राजा जय सिंह ने इसका निर्माण पूरा करवाया. इसकी भव्यता देखकर विशप हैबर ने कहा था कि “मैंने क्रेमलिन में जो कुछ देखा और अलब्रह्मा के बारे के जो कुछ सुना यह महल उससे भी बढ़कर है. आमेर महल की तलहटी में केसर क्यारी और मावठा झील की सुंदरता देखते ही बनती है. इस दुर्ग को यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत सूची में शामिल किया है.

World Heritage Day:
Image Source : Tavelogy India

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चित्तौड़गढ़ दुर्ग

World Heritage Day: अपनी बहादुरी बलिदान और स्वाभिमान की आन के लिए जाना जाने वाला यह दुर्ग राजस्थान का गौरव और दुर्गों का सिरमौर है. ऐसी मान्यता है कि इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने सातवी शताब्दी में करवाया लेकिन बाद में यह मेवाड़ के राजाओं के अधीन रहा. चित्तौड़गढ़ दुर्ग अपने बलिदान और जोहर के लिए इतिहास में विशेष स्थान रखता है. इस दुर्ग को सभी गढ़ों में श्रेष्ठ बताते हुए कहावत कही जाती है कि “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढेैया” 2013 में यूनेस्को ने इस दुर्ग को अपनी विश्व विरासत सूची में शामिल किया.

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Image Source : lifeberrys..com

मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर

World Heritage Day: मारवाड़ के राठौड़ राजपूतो की वीरता और स्वाभिमान का बखान करता यह विशाल दुर्ग जोधपुर शहर के धरातल से 112 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है. यह दुर्ग बारीक नक्काशी और विशाल प्रांगण के लिए जाना जाता है. मारवाड़ के शासक और जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने इस दुर्ग की नींव मई 1459 के रखी बाद में मारवाड़ पर शासन करने वाले अलग अलग शासकों ने इस दुर्ग के अंदर अनेक महल और छतरियों का निर्माण करवाया. कहा जाता है कि इस दुर्ग की नींव के साथ एक व्यक्ति की जिंदा बली दी गई थी जिसका चबूतरा अभी भी इस दुर्ग के प्रांगण में बना हुआ है. मेहरानगढ़ के अलावा इस दुर्ग को मयूरध्वजगढ़, मोरध्वजगढ़, गढ़चिंतामणि जैसे नामो से भी जाना जाता है.

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सोनारगढ़ दुर्ग जैसलमेर

World Heritage Day : सुदूर रेगिस्तान में पश्चिमी छोर पर स्थित सोनारगढ दुर्ग का निर्माण जैसलमेर के शासक रावल जैसल भाटी ने 1155 ईसवी में करवाया. बीच रेगिस्तान में होने के कारण इस दुर्ग के बारे में कहावत प्रचलित है कि यहां पत्थर के पैर और लोहे के शरीर के साथ ही पहुंचा जा सकता है. इस दुर्ग के चारो और घघरानुमा परकोटा बना हुआ है और इसके निर्माण में चूने का प्रयोग बिल्कुल भी नही हुआ है. इस दुर्ग में अनेक पोल है और इसके प्रवेश द्वार को अक्षय पोल के नाम से जाना जाता है.

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