राजस्थान की राजनीति का केन्द्र बिंदु इन दिनों करौली (Karauli) बना हुआ है. दो अप्रैल को जुलूस के बाद बने तनाव के माहौल के बीच हर नेता माइलेज लेना चाहता है. बयानों और आरोपो का दौर लगातार जारी है साथ ही अब इससे मिलने वाले पोलिटिकल माइलेज पर भी हर बड़े नेता की नजर है.
सरकार की गले की फांस बना करौली
करौली (Karauli) हिंसा के बाद दो समुदायों के बीच तनाव के माहौल के बाद राजस्थान के राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले है.राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सरकार द्वारा बजट दिए जाने के बाद गहलोत ने ऐंटी इनकंबेंसी को अच्छी तरह कंट्रोल कर लिया था लेकिन करौली (Karauli) मामले में सरकार को इस जगह बड़ा घाटा हुआ है.बजट के बाद सरकार के पक्ष में बने माहौल के बाद राजस्थान की राजनीति के भीतरखाने में यह चर्चा चल पड़ी थी कि भाजपा की बंदरबांट की लड़ाई में गहलोत फिर से वापसी कर सकते है लेकिन अब उन्ही जानकारो का कहना है कि करौली हिंसा ने सरकार की बजट की कमाई को ठिकाने लगा दिया है.ऐसे में करौली हिंसा आने वाले चुनाव में सरकार की गले कि फांस बन सकता है.
किरोड़ी सबसे ज्यादा आशावादी
किरोड़ी लाल मीणा पूर्वी राजस्थान के दिग्गज नेता माने जाते है लेकिन पिछले कुछ साल से अपने क्षेत्र में उनकी जमीन खिसकी है ऐसे में किरोड़ी करौली के सहारे फिर से अपनी नाव को किनारे तक पहुंचाने की जुगत में है.धरना पॉलिटिक्स में विश्वास करने वाले किरोड़ी ने करौली मामले पर भी अपना वही तुरुप का इक्का चला है और लगातार इस मुद्दे पर सक्रिय है.
पार्टी ने किया किनारा
करौली (Karauli) मामले पर किरोड़ी के सक्रिय होने के बाद उनकी पार्टी ने किरोड़ी से पूरी तरह से किनारा कर लिया है.किरोड़ी केवल अपने निजी समर्थकों के भरोषे इस मुद्दे को उठा रहे है.ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पुनिया नही चाहते कि इस मामले का पोलिटिकल माइलेज उनके अलावा कोई दूसरा ले.इसलिए किरोड़ी के साथ इस मामले पर पार्टी अभी तक नदारद ही दिखी है.वही अब तक किरोड़ी लाल को भी वसुंधरा केम्प से माना जा रहा था लेकिन इस मामले पर वसुंधरा खेमा भी किरोड़ी से दूर नजर आया.इसलिए अब चर्चा है कि अगर पूर्वी राजस्थान में किरोड़ी इस मुद्दों को लेकर अपने पक्ष में माहौल बना पाते है तो पुनिया,वसुंधरा और शेखावत गुट के अलावा भाजपा में जल्द ही किरोड़ी गुट भी सामने आ सकता है.
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पुनिया गुट का माइलेज स्कोर
करौली (Karauli) में हिंसा होने के तुरंत बाद भाजपा ने इस मामले को हाथोंहाथ लपक लिया और सरकार को चारों तरफ से घेरना शुरू किया.चूंकि अभी प्रदेश भाजपा का नेतृत्व सतीश पूनिया के हाथ मे है इसलिए पुनिया गुट का माइलेज स्कोर अभी बाकी नेताओ से ठीक माना जा सकता है लेकिन सतीश पूनिया खुद पूर्वी राजस्थान से नही आते और वहाँ के समीकरणों पर उनकी समझ किरोड़ी लाल से बजाय थोड़ी कम है तो माना जा सकता है कि इस मुद्दे पर सवार होकर अगर भाजपा पूर्वी राजस्थान में अपनी जमीन मजबूत कर पाती है तो भी उसका इनडायरेक्ट फायदा किरोड़ी लाल को होने वाला है.
अपने पांव पर कुल्हाड़ी तो नही मार रहे पूनिया
सतीश पूनिया गुट ने करौली (Karauli) हिंसा पर मीडिया से लेकर धरातल पर जमकर सरकार के खिलाफ माहौल बनाया लेकिन पूर्वी राजस्थान के समीकरणों को ठीक से समझने वाले लोगो का मानना है कि पूर्वी राजस्थान में भाजपा शुरु से कमजोर रही है अगर इस मुद्दे पर भाजपा को राजनीतिक फायदा होता है तो उसमें पूनिया पीछे रहेंगे क्योकि पूनिया खुद पूर्वी राजस्थान से नही आते जबकि पार्टी में ही उनकी प्रतिद्वंद्वी वसुंधरा राजे के साथ ही एक और महत्वकांशी नेता किरोड़ी लाल पूर्वी राजस्थान की राजनीति में अच्छा वर्चस्व रखते है.
जातीय समीकरण में भी पूनिया पीछे
इसके अलावा पूर्वी राजस्थान (Karauli) के जातीय समीकरण भी सतीश पूनिया के साथ नही है जबकि मीणा गुर्जर बाहुल्य इस क्षेत्र में किरोड़ी लाल आज भी अपनी जाति के सबसे बड़े नेता माने जाते है.पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने इस क्षेत्र के लगभग सभी टिकिट किरोड़ी लाल की सहमति से दिए थे ऐसे में पूनिया के लिए किरोड़ी की अनदेखी करना मुश्किल काम रहेगा.ऐसे में माना जा रहा है कि भविष्य में किरोड़ी लाल सतीश पूनिया के समीरकण बिगाड़ने के साथ ही उनके सामने एक बड़ी चुनोति बन सकते है.
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