गणगौर को लूटना वीरता का प्रतीक

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Gangaur 2022 : अक्सर त्यौहार हंसी खुशी और जीवन में उल्लास के लिए मनाए जाते है। लेकिन राजस्थान के इतिहास में ना जाने कितनी ही बार त्यौहार की खुशी युद्ध मे बदल गई है.

रियासतकाल में राजस्थान में जिस रियासत या ठिकाने की गणगौर जितनी भव्य और विशाल रहती थी उसकी उतनी ही चर्चा होती थी और इस होड़ में सब रियासत और ठिकाने गणगौर की भव्य सवारी निकालते थे. राजपूतो की इस होड़ ने हंसी खुशी के इस त्यौहार को भी एक युद्ध का मैदान बना दिया और उसके बाद ना जाने कितने ही युद्ध गणगौर को लेकर हुए.

कोटा की गणगौर को चतुराई से लूट लिया

एक बार उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह ने कोटा की गणगौर (Gangaur) की तारीफ सुन ली तो यह बात वो हजम नही कर पाए और राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी वीर कोटा की गणगौर उदयपुर लेकर आएगा उसे सम्मानित किया जाएगा. यह सुनकर गोगुन्दा के लाल सिंह चतुराई से वह गणगौर कोटा से ले आये और महाराणा स्वरूप सिंह को भेंट करी.

बूंदी की गणगौर बालुन्दा ठिकाने में

एक समय मे बूंदी की गणगौर (Gangaur) पूरे राजपुताना की रियासतों में सबसे अधिक चर्चित रहती थी. बूंदी के राव की ससुराल मेड़ता ठिकाने में थी. एक बार जब राव साहब अपने ससुराल गए तो उन्होंने बालुन्दा ठिकाने के राव चांदा की बहादुरी के किस्से सुने तो उन्हें अच्छा नही लगा और कह दिया कि चांदा जैसे बहादुरी मेरे दरबार मे बहुत है.

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Image Source : Times of India

जब चांदा को यह बात पता चली तो वो अपने कुछ बहादुर साथियों के साथ बूंदी पहुंचे और वहाँ की गणगौर लूट लाये।इस घटना के बाद चांदा की बहादुरी की हर तरफ तारीफ हुई।बूंदी की वह गणगौर आज भी बालुन्दा ठिकाने में रखी हुई है। इस प्रसंग पर एक कहावत चल पड़ी…

“हाड़ो ले डूबयो गणगौर” क्योकि इस घटना के बाद बूंदी में कभी गणगौर की सवारी नही निकाली गई.

लेकिन मेड़ता की गणगौर को भी लूटा गया

ऐसा कहा जाता था कि मेड़ता की गणगौर भारी सुरक्षा के बीच रहती थी लेकिन जोबनेर ठिकाने के सिंघपुरी गांव के ठाकुर राम सिंह उस सुरक्षा में सेंध लगाकर मेड़ता की गणगौर को उठा लाये.

बेदला ठिकाने में बिना सिर वाली गणगौर की पूजा

मेवाड़ के बेदला ठिकाने में आज भी बिना सिर वाली गणगौर की सवारी निकलती है. कहा जाता है कि एक युद्ध में गणगौर की गर्दन कट गई लेकिन धड़ को बचा लिया गया. उसके बाद यहाँ लगातार बिना सिर वाली गणगौर की पूजा की जाती है.

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गणगौर बचाई तो इनाम में मिला गांव

बीकानेर रियासत की गणगौर (Gangaur) की भव्यता के किस्से जब जैसलमेर तक चर्चित हुए तो महारावल ने अपने सैनिकों को इसे लूटने का आदेश दे दिया. मेहजल नाम के यौद्धा ने तलवार की नोंक पर बीकानेर की गणगौर लूट ली. बाद में बीकानेर के यौद्धा लखन सिंह मेहजल से युद्ध करके वह गणगौर वापस ले आये. लखन सिंह की इस वीरता पर बीकानेर के महाराजा इतने खुश हुए कि उसे एक गांव जागीर में दे दिया. लखन सिंह की वीरता के किस्से आज भी बीकानेर की महिलाएं गणगौर पर लोक गीतों में गाती है.

जयपुर की गणगौर सबसे अलग

बाकी रियासतों के अलावा जयपुर की गणगौर (Gangaur) की सवारी अपने आप मे अनूठी है. यहाँ की गणगौर की भव्यता के किस्से इतने विख्यात हुए की 1875 में राजपुताना के बाहर से ग्वालियर रियासत के महाराजा एक बार गणगौर की सवारी देखने जयपुर आये. 1907 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह भी विशेष मेहमान बनकर जयपुर की गणगौर देखने आए थे.

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Image Source : Udaipur Beats

गणगौर को गार्ड ऑफ ऑनर

जयपुर की गणगौर (Gangaur) की खास बात यह थी कि जयपुर इन्फेंट्री के बंदूकधारी जवान गणगौर (Gangaur) माता को गार्ड ऑफ ऑनर देते थे साथी ही गणगौर की सवारी के दौरान पूरे शहर की सुरक्षा एकदम चाक चौबन्ध रहती थी इसलिए बाकी रियासतों की तरह जयपुर की गणगौर लूटने की किसी मे हिम्मत नही दिखाई.

केवल गवर की ही होती है पूजा

जयपुर में गणगौर (Gangaur) पर्व पर केवल गवर की ही पूजा होती है. क्योंकि बहुत समय पहले ईसर को किशनगढ़ भेजा था उसके बाद वो कभी वापस जयपुर नही लौटे।इसलिए जयपुर में आज भी बिना ईसर के केवल गवर की ही सवारी निकाली जाती है.

सवाई मान सिंह द्वितीय ने दी अनूठी पहचान

जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय ने जयपुर की गणगौर (Gangaur) को एक अलग पहचान दी. उनके समय गणगौर के अवसर पर पूरे जयपुर को दुल्हन की तरह सजाया जाता था. साथ ही तीन दिन का अवकाश भी रखा जाता था।शाम की संगीत महफिल में बड़े-बड़े कलाकार जयपुर आमंत्रित रहते थे.

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