Rajasthan Diwas – 30 मार्च : मरुधरा को विधाता से केवल दुर्भाग्य ही मिला है। रहने को बंजर जमीन, पीने को चौमासे का पानी, खाने को दो फांक बाजरे की संपत्ति के नाम पर अरावली के कंकड़ पत्थर। त्यौहार के नाम पर अकाल और मनोरंजन के लिए युद्ध।
दुर्भाग्य की ब्याहता ये धरती कभी अपने दुर्भाग्य पर नहीं रोई। यहां के लोगो ने इसे ही अपना सौभाग्य समझकर इन कंकड़ पत्थरो के लिए आगे आकर शीश दिए है। जिसके कारण कभी शेरशाह सूरी गिरी सुमेल युद्ध मे कहा था कि मैं मुठ्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता।
राजस्थान की भूमि में ऐसा कोई फूल नहीं उगा जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से भरकर न झूमा हो। वायु का एक भी झोंका ऐसा नहीं उठा जिसकी झंझा के साथ युद्ध देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रस्थान न हुआ हो। मिट्टी का ऐसा कोई कण न हुआ जिसने रक्त का भोग न लिया हो। राजपूतो का ऐसा कुटुंब न हुआ जिसमें कोई सती और झुंझार न की पूजा ना होती हो।
जेठ की दुपहरी ये मरुधरा तपकर प्रकृति की तपस्या करती है और वरदान में बारिश लाकर खुद प्यासी रहती है, पर देश को पानी पिलाती है। – (Rajasthan Diwas)
महाकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था की जब भी मैं राजस्थान की धरती पर पाँव रखता हूँ तो मेरे पैर कांपने लगते है कि कहीं मेरे पांव के नीचे किसी वीर की समाधि या किसी वीरांगना का थान ना आ जाए। यहां अपने इष्टों की आराधना गौरवमयी जीवन नही अपितु गौरवमयी मृत्यु के लिए की गई।
बिरले लोगो की बिरली ही गौहर गाथाएं होती हैं। यहां के योद्धा इतने भोले रहे है, कि रणभूमि में शीश भूलकर धड़ से युद्ध करके गौहर दिखाते थे। वीरता और पराक्रम के ऐसे बिरले उदाहरण सम्पूर्ण विश्व मे कही और नही।
तभी तो कवि ने कहा है कि….
बौले सुरपत बैण यूँ ,
सुरपुर राखण सान |
सुरग बसाऊं आज सूं,
नान्हों सो रजथान ||
[सुर-पति इंद्र कहता है कि स्वर्ग की शान रखने के लिए आज से मैं यहाँ भी एक छोटा सा राजस्थान बसाऊंगा | ताकि लोग स्वर्ग को भी वीर भूमि समझे ] – (Rajasthan Diwas)
प्रताप, हम्मीर, कुम्भा, वीरमदेव, मीरा, करमा, पन्ना पद्मिनी की जगविख्यात कहानियां यहां लिखने की आवश्यकता नही है। बहुत कही जा चुकी बहुत सुनी जा चुकी।
राजस्थान में शुरू से ही आजीविका के लिए परदेश जाकर कमाने की परंपरा रही है। अपने गौरवशाली अतीत और स्वाभिमानी परम्परा को लेकर राजस्थानी बेटे जहां भी गए है उस जगह को निहाल कर दिया इस लिए कालांतर में कहावत चल पड़ी “जहां ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी” आज देश के टॉप बिजनेस एम्पायर में मारवाड़ियों अपना एकछत्र राज कायम कर चुके है।
हम इसलिए भी वंदनीय है कि आज के दौर में जब हमारा लोकतंत्र भाषाई उन्माद और क्षेत्रवाद जैसी विषबेल में जकड़ चुका है वहां हमारे अंदर भाषा को लेकर उन्माद नही है। हमारे यहाँ राजस्थानी फस्ट के नारे नही लगते हम बिहारी भाइयो को मार पीटकर बाहर नही निकालते क्योकि रोटी की कीमत वह पहचानता है जिसने रोटी के लिए संघर्ष किया हो। – (Rajasthan Diwas)
गर्व करिये अपने राजस्थानी होने पर अपने भारतीय होने पर,
जय जय राजस्थान