Ek Tha Raja : ब्रिटिश शासन से पहले भारत के शाही परिवार और राजाओं को दुनिया के सबसे अमीर माना जाता है. उनके परिवार को भी शाही परिवार कहा जाता था. उनके शाही महलों को देखने के लिए आज भी लोग कई किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं. ये शाही महल आज उनके गौरवशाली समय के प्रतीत हैं. आज भी उन राजाओं के वंशज देश में उसी ठाठ के साथ रहते हैं. हालांकि हमारे देश के राजा-महाराजा ना सिर्फ अपने महलों और पहनावे को लेकर चर्चा में रहते थे बल्कि इनमें से कई तो अपनी हैरान करने वाले शौकों के लिए भी खासे प्रसिद्ध हुए. ऐसे ही एक महाराज थे जिनके शोक के बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं.
The eccentric Maharaja of #Junagadh, Muhammad Mahabat Khan III (1900-1959) owned over 800 #dogs, each with its own room, a telephone and an attendant. It is believed that he invited Lord Irwin to the marriage of his favorite pet Roshanara, but the viceroy understandably refused. pic.twitter.com/c6UbBFHALL
— LiveHistoryIndia (@LiveHIndia) May 2, 2018
Ek Tha Raja : अजीब शौक की बात करें तो इसमें नाम आता है जूनागढ़ के महाराजा, मुहम्मद महाबत खान III का भी. कहा जाता है कि महाराज को कुत्तों का खासा शौक था, उनके पास 4-5 नहीं बल्कि 800 कुत्ते थे. चलो आप भी बोलेंगे कि वो महाराज थे तो ये शौक रख सकते हैं, लेकिन ये सुनकर आपको भी आश्चर्य होगा कि इन 800 कुत्तों को लिए अलग-अलह कमरे बनाए गए थे. और तो और अब ये भी सुन लें कि प्रत्येक कुत्ते के लिए एक निजी नौकर भी हुआ करता था. ये नौकर सिर्फ अपने-अपने मालिक कुत्तों की देखभाल किया करता था.
Ek Tha Raja : कहा जाता है कि इन कुत्तों से महाराजा को इतना लगाव था कि वे कई दिनों तक अपनी बेगम के पास भी नहीं जाते थे और कुत्तों के साथ समय बीताने के तबज्जो देते थे. जब इनमें के कोई कुत्ता बीमार हो जाता था तो उसके इलाज ब्रिटिश पशु चिकित्सक के पास ले जाकर कराया जाता था. अगर इन कुत्तों में से किसी प्यारे कुत्ते की मौत हो जाती थी तो महाराजा कई दिनों तक शोक मनाते थे. इतना ही नहीं 5 दिनों तक का राजकीय शोक तक घोषित किया जाता था. अब आपको लगेगा कि इससे ज्यादा पागलपन कुछ नहीं हो सकता, लेकिन ये आपका भ्रम है.
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Ek Tha Raja : सबसे हद तो तब हो गई थी जब जब उनके दो पसंदीदा पालतु कुत्तों ने संभोग किया और एक कुतिया ने बच्चे को जन्म दिया तो राजा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. कहा जाता है कि महाराजा ने उनकी विवाह के लिए उस जमाने में लगभग 20 लाख रुपये खर्च किए थे. और तो और वायसराय को भी शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. इतना ही नहीं आम नागरिकों को खुशियां मनाने के लिए शादी के दिन को राजकीय अवकाश घोषित किया गया था.
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