Weak Opposition Politics : 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद ऐसे कई मौके आए हैं जब सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं. विवादों को मोदी शाह की जोड़ी ने कुछ इस तरह से खतम किया जैसे पहले कुछ हुआ ही नहीं था. दूसरी लहर के दौरान देशभर में जो स्थिति हुई थी उसके बाद किया मोदी ने कैबिनेट विस्तार कर दिया. ऐसा कर ये दिखाने कोशिश की गई थी हमने जिम्मेदारों को सजा दी है. इसके साथ ही कुछ और भी दूसरे मौके आए जिसमें लोगों ने कुछ इसी तरह लीपापोती की गई. हालांकि आज हम भाजपा की बात नहीं कर रहे बल्कि हम विपक्ष की बात करने वाले हैं. सबका साथ सबका विकास नारा भले ही भाजपा का हो लेकिन अभी तो विपक्ष के लिए यह नारा काफी जरूरी हो गया है.
Weak Opposition Politics : विपक्ष की राजनीति की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में इसमें महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहे हैं. चुनाव के परिणाम इस ओर इशारा करते हैं कि विपक्ष कहीं भी जनता के मुद्दों को भुनाने में कामयाब नहीं हो पा रहा. कोलकाता जैसे एक्का दुक्के राज्यों को छोड़ दें तो फिर कहीं भी विपक्ष मजबूत नहीं दिखाई देता. दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपनी साख बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आ रहा. स्थिति यह है कि जहां उनकी सरकार की भी वह भी उनके हाथ से निकलती जा रही है.
Weak Opposition Politics : इन परिस्थितियों में भारत की राजनीति में गैर भाजपाई दो बड़े चेहरे सामने आते हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले इनमें से तीन चेहरे पर बात हो सकती थी. चुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव इस दौड़ से बाहर नजर आते हैं. ऐसे में अब कोलकाता की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लगातार आम आदमी पार्टी का विस्तार करते अरविंद केजरीवाल बड़े चेहरे हैं. ममता बनर्जी ने जिस तरह अकेले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का हमला खेलते हुए उन्हें मुंह की दी थी यह किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में अगर विपक्ष एक होता है तो ममता बनर्जी नेतृत्व करने में सक्षम भी है और काबिल भी.
Weak Opposition Politics : दूसरी ओर देश की राजधानी में बैठकर केंद्र सरकार को नाकों तले चने चबवाने वाले अरविंद केजरीवाल को भी आप कम नहीं आक सकते. दिल्ली में जिस तरह से चुनाव संपन्न होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी का विस्तार किया है वह काफी काबिले तारीफ है. पंजाब में अप्रत्याशित रूप से जीत दर्ज कर एक तरह से अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया है कि वह विपक्ष का चेहरा बन सकते हैं. हालांकि अभी अरविंद केजरीवाल पंजाब और दिल्ली तक सीमित हैं, लेकिन लगातार भी अपने पांव पसारने का प्रयास कर रहे हैं.
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Weak Opposition Politics : दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस कहीं ना कहीं इन दोनों में से कोई एक चेहरे के पीछे होने को अपनी मजबूरी मानेगी. इसके पीछे का बड़ा कारण हाल में कांग्रेस को मिली विफलता है. जिस स्थिति में कांग्रेस अभी है उस स्थिति में कोई भी राजनीतिक पार्टी राहुल गांधी को या फिर प्रियंका गांधी को विपक्ष का चेहरा मानने को तैयार नहीं होगी. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए यही उचित भी है कि वह अपना पुराना रुतबा भूल कर एक नई शुरुआत करें.. इससे देश को कम से कम एक मजबूत विपक्ष दिखाई तो देगा…
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