Holi 2022 Latest : देश के विभिन्न इलाकों में अलग अलग तरीके से होली का त्यौहार मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश में भी होली के कई रंग देखने को मिलते हैं. एक और जहां मथुरा वृंदावन में भगवान कृष्ण के साथ फूलों की होली खेली जाती है तो वहीं दूसरी ओर बृज की लट्ठमार होली विश्व में प्रसिद्ध है. हम आज बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की. यहां के मणिकर्णिका घाट पर शिवभक्त अलग तरह की होली खेलते हैं जो आपको सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है. दरअसल, शिव भक्त यहां शमशान की राख से तैयार भस्म के साथ होली खेलते हैं. परंपरा कई सालों से चली आ रही है और आज बारस के दिन एक बार फिर से यहां भस्म के साथ धूमधाम से होली खेली गई.
Holi 2022 Latest : बनारस के मणिकर्णिका घाट के मसान में खेली जाने वाली ये होली अब दुनिया भर में जानी जाने लगी है. बनारस में खासतौर पर इस होली की खूब चर्चा होती है और लोग काफी पहले से इसका इंतजार करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो यहां घाट पर श्मशान नाथ बाबा के श्रृंगार और भूख के साथ ही इस पावन पर्व की शुरुआत की जाती है. बाबा के साथ होली खेलने के बाद ही आम लोग रंगों की होली खेलते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव को ये भस्म की होली काफी पसंद है. वैसे तो हरिश्चंद्र घाट पर भी मसान की होली खेली जाती है लेकिन मणिकर्णिका घाट पर इसका महत्व कुछ और ही देखने को मिलता है.
Holi 2022 Latest : इस बार भी लोग भस्म की होली खेलने के लिए सुबह से ही पहुंचने लगे. कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट में शवों के अंतिम संस्कार करने का रिवाज सैकड़ों साल पुराना है. हालांकि यहां पर खेले जाने वाली होली में रंगों का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि यज्ञ, हवन कुंड, आघोरियों की धूनी और चिताओं की रात का प्रयोग किया जाता है. बता दें कि काशी की होली में राग और विराट दोनों का संगम देखने को मिलता है. ऐसी मान्यता है कि काशी में भगवान शिव ने लोगों को मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी. ऐसे में यह दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां लोगों की मृत्यु को काफी मंगल माना जाता है.
Uttar Pradesh | People take part in early celebrations of Holi at Varanasi’s Manikarnika Ghat pic.twitter.com/3YXDnDWVzH
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) March 15, 2022
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Holi 2022 Latest : इसके पीछे की कहानी यह है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा भोलेनाथ मां पार्वती का गाना कराने के बाद देवों और भक्तों के साथ होली खेलते हैं. इस दौरान बाबा के प्रिय भूत प्रेत पिशाच और दूसरे जीव जंतु उनके साथ होली नहीं खेल पाते. जब अगले दिन भगवान शिव मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने आते हैं तो अपने दूसरे गणों के साथ भस्म की होली खेलते हैं. इसी कहानी को आधार मानकर आज भी सैंकड़ों साल से भस्म की होली खेली जा रही है.
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