कोटा | पूर्व सांसद रहे महाराज कुमार इज्यराज सिंह कोटा रियासत के नए महाराव बन गए हैं। महाराव बृजराज सिंह के देहावसान के बाद रंग दस्तूर कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पूर्व राजघरानों की मौजूदगी में पाग की पारम्परिक रस्म की अदायगी हुई। ठिकानेदारों ने नए महाराव के दीर्घायु की कामना की।
कोटा के पूर्व महाराज बृजराज सिंह के निधन के बाद 13वें के दिन महाराज कुमार रहे इज्यराज सिंह को रंग दस्तूर कार्यक्रम में पूर्व राज परिवार का नया महाराव की उपाधि दी गई है। राजमहल चौक कोटा गढ़ पर हुए इस आयोजन में महारानी कल्पना देवी, महाराज कुमार जयदेव सिंह, बूंदी के भावी महाराव कुंवर वंशवर्धन सिंह, महाराज बलभद्र सिंह कापरेन समेत पूर्व राज परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, आसपास की रियासतों के पूर्व जागीरदार तथा उनके प्रतिनिधि मौजूद रहे।
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लोकतंत्र में भी खासी पैठ
वैसे तो भारत में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही कोटा रियासत का राजस्थान में विलय कर दिया गया था। परन्तु इसके बाद भी यहां के महाराव भीम सिंह द्वितीय 25 March 1948 से 18 April 1948 तक राजप्रमुख रहे। बाद में वे 18 April 1948 से 31 October 1956 तक उप राज प्रमुख बने रहे। उनके पुत्र महाराव बृजराज सिंह Jhalawar लोकसभा क्षेत्र से 1962, 1967 तथा 1971 में तीन बार सांसद चुने गए। अभी महाराव बने इज्यराज सिंह 2009 में कोटा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं।
#कोटा महाराव साहब श्री इज्यराज सिंह जी का आज पाग दस्तूर कार्यक्रम हुआ। महाराव साहब, महाराज कुमार साहब सपरिवार दीर्घायु रहें, स्वस्थ रहें, यशस्वी रहें यही कुलदेवी से कामना।
– कुंवर वंशवर्धन सिंह कापरेन#IjyarajSingh #Kota #VanshvardhanSingh #Bundi pic.twitter.com/l5oI8b7zj6— Vanshvardhan Singh Bundi (@vvsbundi) February 10, 2022
इनकी पत्नी महारानी कल्पना देवी वर्तमान में लाडपुरा सीट से भाजपा की विधायक हैं। इससे साबित होता है कि कोटा राज परिवार की लोकतंत्र में भी जनता के बीच खासी पैठ है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी कहा था कि राजस्थान के विकास में कोटा राज परिवार का बड़ा योगदान रहा है।
अब बूंदी की बारी
कोटा महाराव तय होने के बाद हाड़ा वंश में अब बूंदी महाराव का पाग दस्तूर शेष है। आपको याद होगा कि कोटा के स्वर्गीय महाराव बृजराज सिंह ने बूंदी के पाग दस्तूर कार्यक्रम को लेकर अपनी राय दी थी और कापरेन ठिकाने के वंशवर्धनसिंह को इसका दावेदार माना था। बूंदी रियासत के भाणेज और अलवर के महाराजा भंवर जितेन्द्रसिंह ने भी इस पर अपनी सहमति व्यक्त की थी। महाराव बृजराज सिंह ने कुछ लोगों द्वारा भूपेश हाड़ा का पाग दस्तूर कर दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी।
महाराव ने एक पत्र लिखकर कहा था कि “भारतीय परंपरा के अनुरूप किसी घर के स्वामी के निधन के बाद उस परिवार के वरिष्ठ व्यक्ति को उत्तराधिकारी घोषित करने की औपचारिकता की जाती है। इस औपचारिकता को पगड़ी के दस्तूर के रूप में जनभाषा में कहा जाता है। पगड़ी की औपचारिकता का मुख्य उद्देश्य परिवार की निरंतरता को बनाए रखना तथा परिवार द्वारा प्रतिपादित मर्यादाओं का सुचारु रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी अनुपालना किया जाना है। सामूहिक पगड़ी आयोजन जनसामान्य की स्वीकृति को भी इंगित करता है। इस परिपाटी को जन सामान्य पुरातन काल से अनुसरण करते आए हैं।”